दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तीन दिवसीय व्याख्यान माला (17-19 सितम्बर 2018) का बुधवार को सरसंघचालक डॉक्टर मोहन भागवत के भाषण के साथ समापन हुआ. इस कार्यक्रम की टाइमिंग पर ध्यान देना जरुरी है और इसके पीछे छुपे उद्देश्य को समझना उतना ही उपयोगी.
नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने 1938 में कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद प्रांतीय उद्योग मंत्रियों का सम्मलेन किया था, राष्ट्रीय योजना आयोग का गठन किया था. क्यूँ किया था? क्योंकि उन्हें भारत आज़ाद होता दिख रहा था और आर्थिक संगठन आवश्यक था. ऐसा समझना चाहिए कि बदलती वैश्विक और देशज राजनीति के सन्दर्भ में भारत के विकास पर भागवत जी अपना दृष्ट्रिकोण पत्र/विज़न पेश कर रहे हैं. कांग्रेस समेत सम्पूर्ण विपक्ष की भागीदारी उनके संकीर्ण दृष्टिकोण के कारण रुक गई. इसी कार्यक्रम में भागवत जी ने कांग्रेसी दल और नेताओं की आज़ादी की लड़ाई में भूमिका के लिए प्रशंसा की. अटलजी भी लोकसभा में ऐसा कर चुके हैं.
कांग्रेसी प्रवक्ता एक सुर से स्वतंत्रता संघर्ष में संघ की भूमिका की नकारात्मक प्रस्तुति करते रहे हैं. इनकी आलोचना की भाषा उत्तर आधुनिक तो क्या सलीके से आधुनिक भी नहीं है. वे यह भूल जाते हैं कि RSS को सम्मान नेहरू जी और जयप्रकाश जी की तरफ से दिया गया. ये प्रवक्तागण अपने आप को नेहरू से भी बेहतर समझते हैं?
बचपन से ले कर JNU तक वामपंथी शिक्षकों द्वारा सुनाया जाता रहा की RSS मुस्लिम विरोधी है. उसी RSS ने प्रस्तुत किया है कि मुस्लिम के बिना हिंदुत्व अधूरा है. पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर जी भी ऐसा कहते थे और प्रो. बिपन चंद्र उनकी प्रशंसा करते थे.
आदरणीय मोहन भागवत जी ने एक अति महत्वपूर्ण बात कही है की गुरूजी की पुस्तकों में लिखी सभी बातों को आज लागू नहीं किया जा सकता. परिस्थितियां बदली हैं और इसी के सन्दर्भ में कार्य होना चाहिए.
त्रिदिवसीय कार्यक्रम: जैसा मैंने समझा