भोपाल की गैस दुर्घटना कांड के न्यायिक फैसले पर मीडिया में रोचक रहस्योदघाटन हुए। दिग्विजय सिंह समेत कईयों के खुलासे आये कि अमेरिकी दबाव में यूनियन कारबाइट के चेयरमैन एंडरसन कि रिहाई हुई। अब इसे क्या कहें कि अमेरिकी फर्मों के हितों और मालिकानों की रक्षा चीनी और रूसी तो नहीं करेंगे। ऐसे आशा मैं तो क्या कोई भी नहीं कर सकता। इसी तरह स्वर्गीय राजीव गाँधी जी पर मोतीलाल वोरा , वी सी शुक्ल, और प्रणव मुखर्जी ने कहा कि राजीव जी इस प्रकरण में कुछ नहीं किया और वे इस प्रकरण में कुछ जानते भी नहीं थे। अगर ये तीनों सही है तो रोचक प्रश्न होगा कि क्या राजीव जी को टीवी-रेडियो-अख़बार से भी खबर नहीं मिली थी कि एंडरसन को जमानत पर रिहा किया गया है? उन्हें इतना निरपेक्ष और अज्ञानी तो वी पी सिंह भी नहीं मानते थे - बोफोर्स मामले में।
कवरेज कि भाषा में भी जबरदस्त चूकें नोटिस में आयीं। जमानत पर छूट कर शासकीय विमान से जाने कि घटना को "भाग जाना" कहना गले से नीचे नहीं उतरता है।
इसी तरह कानूनी मामला भी है। वीरप्पा मोइली ने जोर दिया कि गैर इरादतन हत्या की धारा ३०४(२) को बदल कर ३०४(A) दुर्घटनावश हत्या की धारा लगा दी गयी। इस धारा का प्रयोग संभवतः ट्रक दुर्घटना में हुई मृत्यु/हत्या के लिए किया जाता है। यह सही है कि भोपाल दुर्घटना ट्रक दुर्घटना नहीं थी पर फैक्ट्रियां इसलिए नहीं खोली जातीं कि वहां दुर्घटना घटित करा कर लोगों को मारा जा सके। फैक्ट्री इसलिए खोली जाती है कि उत्पादन किया जा सके और लाभ अर्जित किया जा सके। इसके बाद भी औद्योगिक दुर्घटनाएं घट जाती है। कभी भी, कहीं भी। रूस कि चर्नोबिल कि दुर्घटना इसी तरह कि थी। अमेरिका और चीन में भी इस तरह की घटना घट चुकी है।
इस सारे घटनाक्रम में एक अल्पज्ञात पहलू यह भी है कि यूनियन कारबाइट के चेयरमैन एंडरसन भोपाल या भारत के किसी भी हिस्से में निवास नहीं कर रहे थे। दुर्घटना के बाद एंडरसन भारत आना चाहते थे। केंद्र सरकार की तरफ से सेफ पैसेज का वादा किया गया (हरिभूमि १८/६/१०)। इस हालत में एंडरसन के भारत आगमन को समझा जाना चाहिए। एंडरसन के विरुद्ध अनावश्यक उन्माद खड़ा किया गया है। यह भीड़ कि मानसिकता है। निर्दोष ट्रेन यात्रियों पर अँधेरे में पत्थर मारने जैसी। महाभारत युद्ध के दौरान पितामह भीष्म ने दुर्योधन के कहने पर पांडवों के वध की प्रतिज्ञा कर ली थी. कृष्ण और अर्जुन इसकी काट के लिए कौरव शिविर पहुँचते है। दुर्योधन से मुलाकात होती है। संस्मरण सुने-सुनाये जाते है पर दुर्योधन मौका मिलने पर भी दोनों को बंदी नहीं बनाता। पांडवों की समाप्ति की अभिलाषा रखने के बाद भी वह अपने आचरण में उन्माद हावी नहीं होने देता है। न तो यह समय महाभारत का है और न ही एंडरसन अर्जुन है पर स्वेच्छया शोक प्रकट करने आने वाले पर जूते फटकारना भी अच्छा नहीं है।
कवरेज कि भाषा में भी जबरदस्त चूकें नोटिस में आयीं। जमानत पर छूट कर शासकीय विमान से जाने कि घटना को "भाग जाना" कहना गले से नीचे नहीं उतरता है।
इसी तरह कानूनी मामला भी है। वीरप्पा मोइली ने जोर दिया कि गैर इरादतन हत्या की धारा ३०४(२) को बदल कर ३०४(A) दुर्घटनावश हत्या की धारा लगा दी गयी। इस धारा का प्रयोग संभवतः ट्रक दुर्घटना में हुई मृत्यु/हत्या के लिए किया जाता है। यह सही है कि भोपाल दुर्घटना ट्रक दुर्घटना नहीं थी पर फैक्ट्रियां इसलिए नहीं खोली जातीं कि वहां दुर्घटना घटित करा कर लोगों को मारा जा सके। फैक्ट्री इसलिए खोली जाती है कि उत्पादन किया जा सके और लाभ अर्जित किया जा सके। इसके बाद भी औद्योगिक दुर्घटनाएं घट जाती है। कभी भी, कहीं भी। रूस कि चर्नोबिल कि दुर्घटना इसी तरह कि थी। अमेरिका और चीन में भी इस तरह की घटना घट चुकी है।
इस सारे घटनाक्रम में एक अल्पज्ञात पहलू यह भी है कि यूनियन कारबाइट के चेयरमैन एंडरसन भोपाल या भारत के किसी भी हिस्से में निवास नहीं कर रहे थे। दुर्घटना के बाद एंडरसन भारत आना चाहते थे। केंद्र सरकार की तरफ से सेफ पैसेज का वादा किया गया (हरिभूमि १८/६/१०)। इस हालत में एंडरसन के भारत आगमन को समझा जाना चाहिए। एंडरसन के विरुद्ध अनावश्यक उन्माद खड़ा किया गया है। यह भीड़ कि मानसिकता है। निर्दोष ट्रेन यात्रियों पर अँधेरे में पत्थर मारने जैसी। महाभारत युद्ध के दौरान पितामह भीष्म ने दुर्योधन के कहने पर पांडवों के वध की प्रतिज्ञा कर ली थी. कृष्ण और अर्जुन इसकी काट के लिए कौरव शिविर पहुँचते है। दुर्योधन से मुलाकात होती है। संस्मरण सुने-सुनाये जाते है पर दुर्योधन मौका मिलने पर भी दोनों को बंदी नहीं बनाता। पांडवों की समाप्ति की अभिलाषा रखने के बाद भी वह अपने आचरण में उन्माद हावी नहीं होने देता है। न तो यह समय महाभारत का है और न ही एंडरसन अर्जुन है पर स्वेच्छया शोक प्रकट करने आने वाले पर जूते फटकारना भी अच्छा नहीं है।