Tuesday, June 29, 2010

भोपाल, एन्डरसन और मीडिया

भोपाल की गैस दुर्घटना कांड के न्यायिक फैसले पर मीडिया में रोचक रहस्योदघाटन हुए। दिग्विजय सिंह समेत कईयों के खुलासे आये कि अमेरिकी दबाव में यूनियन कारबाइट के चेयरमैन एंडरसन कि रिहाई हुई। अब इसे क्या कहें कि अमेरिकी फर्मों के हितों और मालिकानों की रक्षा चीनी और रूसी तो नहीं करेंगे। ऐसे आशा मैं तो क्या कोई भी नहीं कर सकता। इसी तरह स्वर्गीय राजीव गाँधी जी पर मोतीलाल वोरा , वी सी शुक्ल, और प्रणव मुखर्जी ने कहा कि राजीव जी इस प्रकरण में कुछ नहीं किया और वे इस प्रकरण में कुछ जानते भी नहीं थे। अगर ये तीनों सही है तो रोचक प्रश्न होगा कि क्या राजीव जी को टीवी-रेडियो-अख़बार से भी खबर नहीं मिली थी कि एंडरसन को जमानत पर रिहा किया गया है? उन्हें इतना निरपेक्ष और अज्ञानी तो वी पी सिंह भी नहीं मानते थे - बोफोर्स मामले में।
कवरेज कि भाषा में भी जबरदस्त चूकें नोटिस में आयीं। जमानत पर छूट कर शासकीय विमान से जाने कि घटना को "भाग जाना" कहना गले से नीचे नहीं उतरता है।
इसी तरह कानूनी मामला भी है। वीरप्पा मोइली ने जोर दिया कि गैर इरादतन हत्या की धारा ३०४() को बदल कर ३०४(A) दुर्घटनावश हत्या की धारा लगा दी गयी। इस धारा का प्रयोग संभवतः ट्रक दुर्घटना में हुई मृत्यु/हत्या के लिए किया जाता है। यह सही है कि भोपाल दुर्घटना ट्रक दुर्घटना नहीं थी पर फैक्ट्रियां इसलिए नहीं खोली जातीं कि वहां दुर्घटना घटित करा कर लोगों को मारा जा सके। फैक्ट्री इसलिए खोली जाती है कि उत्पादन किया जा सके और लाभ अर्जित किया जा सके। इसके बाद भी औद्योगिक दुर्घटनाएं घट जाती है। कभी भी, कहीं भी। रूस कि चर्नोबिल कि दुर्घटना इसी तरह कि थीअमेरिका और चीन में भी इस तरह की घटना घट चुकी है
इस सारे घटनाक्रम में एक अल्पज्ञात पहलू यह भी है कि यूनियन कारबाइट के चेयरमैन एंडरसन भोपाल या भारत के किसी भी हिस्से में निवास नहीं कर रहे थे। दुर्घटना के बाद एंडरसन भारत आना चाहते थे। केंद्र सरकार की तरफ से सेफ पैसेज का वादा किया गया (हरिभूमि १८//१०)। इस हालत में एंडरसन के भारत आगमन को समझा जाना चाहिए। एंडरसन के विरुद्ध अनावश्यक उन्माद खड़ा किया गया है। यह भीड़ कि मानसिकता है। निर्दोष ट्रेन यात्रियों पर अँधेरे में पत्थर मारने जैसी। महाभारत युद्ध के दौरान पितामह भीष्म ने दुर्योधन के कहने पर पांडवों के वध की प्रतिज्ञा कर ली थी. कृष्ण और अर्जुन इसकी काट के लिए कौरव शिविर पहुँचते है। दुर्योधन से मुलाकात होती है। संस्मरण सुने-सुनाये जाते है पर दुर्योधन मौका मिलने पर भी दोनों को बंदी नहीं बनाता। पांडवों की समाप्ति की अभिलाषा रखने के बाद भी वह अपने आचरण में उन्माद हावी नहीं होने देता है। तो यह समय महाभारत का है और ही एंडरसन अर्जुन है पर स्वेच्छया शोक प्रकट करने आने वाले पर जूते फटकारना भी अच्छा नहीं है।

2 comments:

  1. तथ्‍य, तटस्‍थ होकर भी नुकीले होते हैं, उनकी चुभन कम नहीं होती. वह चाहे इतिहास हो या हमारा समय.

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  2. मानव स्वभाव के अनुसार कुछ भी गलत नहीं लगता एंडरसन के खिलाफ़ कुछ कहने-बोलने में। आप स्वयं सोचे कि क्या तब कुछ देर के लिए गुस्सा नहीं आता जब किसी किंवाड़ से या लोहे की छड़ से आपको जोरों की चोट अचानक लग जाय। वैसे भी हजारों लोग(शायद 17000) अगर एक रात में मर जायँ तो दोष तो किसी को देना ही होता है। प्रतीक भी तो होता है कुछ।

    इस बारे में एक जगह से कुछ यहाँ चिपका रहा हूँ:

    """
    भारत देश में चल रही अंग्रेजियत वाली न्याय व्यवस्था का ही दुष्परिणाम है – भोपाल गैस हत्याकांड और उस पर आया जिला अदालत का फैसला | 25 साल और 6 माह तक चली अदालती कार्यवाही, 135 से अधिक प्रस्तुत हुए गवाह, 7 से अधिक बदले गए न्यायाधीश, 3000 से अधिक पन्नों पर लिखा गया फैसला | फैसला क्या है ? भोपाल में यूनियन कार्बाइड नाम की अमरीकी कंपनी के कारखाने में 3 दिसंबर 1984 की रात को जहरीली मिथाइल आइसो साइनेट गैस के रिसाव के कारण एक ही रात में लगभग 17000 लोग मर गए थे | और अभी तक 35000 मर चुके हैं | 5 लाख से अधिक जीवित लोगों पर इस जहरीली गैस मिथाइल आइसो साईंनाइड का दुष्प्रभाव पड़ा है | जो मर गए वो तो मुक्त हो गए | लेकिन जो जीवित रह गए हैं उनका हाल मरे हुओं से बदतर है | इस हत्याकांड के बाद पैदा हुए बच्चों पर जेनेटिक दुष्प्रभाव भी गहरा पड़ा है | सारी दुनिया के औद्योगिक इतिहास में अब तक की सबसे बड़ी त्रासदी मानी गयी है ये दुर्घटना | 1986 में इस दुर्घटना के बारे में अदालती कार्यवाही शुरू हुयी और 26 साल बाद अभी 6 जून 2010 को फैसला आया है | इस फैसले में अमरीकी कंपनी यूनियन कार्बाइड को छोड़ दिया गया है | इस अमरीकी कंपनी के भारतीय साझेदार केशव महिन्द्रा और उनके सहयोगियों को 2 साल की जेल, जिसमे कभी भी जमानत हो सकती है, दी गयी है | अदालत का फैसला आने के कुछ ही घंटों बाद केशव महिन्द्रा और उनके सहयोगियों को जमानत पर छोड़ दिया गया | इस पूरे हत्याकांड के लिए जिम्मेदार प्रमुख अभियुक्त वारेन एंडरसन को अदालत, भारत की पुलिस और सरकार कभी भी गिरफ्तार नहीं कर सकी | एक बार वारेन एंडरसन को पकड़ा भी गया था लेकिन अमरीका के दबाव में तत्कालीन केन्द्र व राज्य सरकारों के आदेश पर उसे भारत से भगा दिया गया | भोपाल के गैस पीड़ित पिछले 25 सालों से जिस न्याय की प्रतीक्षा कर रहे थे, वह भी उन्हें नहीं मिला | ऐसा साफ दिखाई दे रहा है की न्याय के नाम पर गत 25 सालों से भोपाल के गैस पीड़ित नागरिकों के साथ खिलवाड़ किया गया है | इस पूरे मामले में ऐसा साफ़ दिखाई दे रहा है कि भारत सरकार ने विदेशी कंपनियों और अमरीकी दबाव के सामने शर्मनाक आत्मसमर्पण कर दिया है | भारत में सभी राजनैतिक दलों की सरकारों द्वारा अकारण ही विदेशी कंपनियों को सभी तरह की सुविधाओं के साथ बुलावा दिया जाता है | इसके लिए वैश्वीकरण और उदारीकरण की नीतियों का सहारा लिया जाता है | इसमें सबसे बड़ा तर्क विदेशी कंपनियों के समर्थन में ये होता है की जब विदेशी कंपनियां आती है तो आधुनिकतम तकनीकी और उच्चतम तकनीकी लेकर आती हैं | यूनियन कार्बाइड भी अमरीका से आधुनिकतम और उच्चतम तकनीक लेकर आई थी और कारखाना लगाया था | उसी अमरीकी उच्च और आधुनिक तकनीक वाले कारखाने में 3 दिसंबर 1984 को टैंकर में से जहरीली गैस मिथाइल आइसो साइनेट का रिसाव हुआ , जिसके कारण यह दुर्घटना हुयी थी | यदि तकनीक जो अमरीका से आई वह उच्चतम और आधुनिक थी, तो जहरीली गैस का रिसाव कैसे हो गया ? यदि तकनीक उच्चतम और आधुनिक थी तो घंटों तक होते रहे गैस के रिसाव को रोक क्यों नहीं पाए ? क्या यूनियन कार्बाइड के अधिकारीयों को इस जहरीली गैस का मनुष्य शरीर पर होने वाले दुष्प्रभाव के बारे में कोई ज्ञान नहीं था ? और यदि था तो उसके बचाव का कोई रास्ता उनके पास क्यों नहीं था ? अमरीका और यूरोप में जिन जहरीले कीटनाशकों और जंतुनाशकों को बनाना और बेचना बंद है , उन्ही को भारत में बनाने और बेचने के लिए यूनियन कार्बाइड भारत में क्यों आई ? क्या जब उसको लाइसेंस दिया गया तब मिथाइल आइसो साइनेट जैसी जहरीली गैस के दुष्प्रभावों के बारे में सरकार को मालूम नहीं था या घूस खा कर लाइसेंस दिया गया ?
    """

    यह यूँ ही मैंने यहाँ रख दिया है।

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