Tuesday, December 7, 2010

नेताजी सुभाष और डॉ. प्रहलाद राय, काव्यमय श्रद्धांजलि

छत्तीसगढ़ के डॉ. प्रहलाद राय अग्रवाल (जन्म 4 दिसंबर 1935 एम.बी.बी.एस. 1959 ) की 2009 में प्रकाशित रचना 'महाकाव्य- नेताजी सुभाष चन्द्र बोस' पठनीय कृति है. डॉ. अग्रवाल पेशे से चिकित्सक हैं और हिंदी के डॉ. प्राध्यापकों की तरह लेखन उनकी मजबूरी नहीं है. प्रस्तुत रचना उनके सहज और अनायास उदगार हैं. इस लेखन में प्रेरक शक्ति नेताजी के प्रति उनकी श्रद्धा है. अनायास इसलिए क्योंकि विषय के जानकारों की सम्मति प्रकाशन के पूर्व ले लेने पर कुछ चूकों से बचा जा सकता था. कृति को महाकाव्य शीर्षक दिया गया है जो अनुचित प्रतीत होता है क्योंकि महाकाव्य में सर्ग आधारित विभाजन होता है. संदर्भित रचना में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की जीवनी कालक्रम से तिरेसठ कविताओं में व्यक्त की गयी है. सुभाष चन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को कटक उड़ीसा में हुआ था. पुस्तक में जन्मस्थान के रूप में कोडालिया (पृष्ठ vi ) का वर्णन है. पृष्ठ vii पर 1939 के कांग्रेस अधिवेशन स्थल के रूप में त्रिपुरा का वर्णन है. वास्तव में यह अधिवेशन जबलपुर की बाहरी सीमा पर त्रिपुरी नामक स्थान पर हुआ था. स्टेनो और धर्मपत्नी के रूप में कु. एमिली शैकन (पृष्ठ vi ) का वर्णन है. सही नाम एमिली शेंकल है. पृष्ठ 58 पर वर्णन है की सुभाष को अंग्रेजी सरकार ने 13 जनवरी 1933 को भारत से निष्काषित कर दिया था. ह अतिरंजना है. इस समय सुभाष अपनी चिकित्सा के लिए स्वेच्छा से विदेश गए थे.


डॉ. अग्रवाल की रचना वीर नायक की कथा है. इस गाथा में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस समग्रता में चित्रित किये गए हैं. विवेकानंद के साहित्य से सुभाष का लगाव प्रभावी रूप में लिखा गया है. कुछ और भी साम्य है. दोनों का जन्म जनवरी में हुआ था. दोनों बांग्लाभाषी होते हुए वैश्विक प्रभाव छोड़ने में सफल रहे. सुभाष लगभग 5 वर्ष के थे तब विवेकानंद का देहावसान हुआ था. सुभाष के लिए विवेकानंद गुजरे ज़माने के दार्शनिक नहीं थे बल्कि कीर्तिमान भारतीय थे. विवेकानंद को पढ़कर सुभाष की धार्मिक जिज्ञासा प्रबल हुई. सही गुरु की तलाश में



उन्होंने गृहत्याग भी किया. परिवार वाले रोये और बिलखे. तब परिवार में बच्चों की संख्या अधिक होती थी लेकिन इससे उनकी महत्ता कम नहीं होती थी. सुभाष ने उत्तर भारत की अपनी धर्मयात्रा को आधार बनाते हुए अपनी आत्मकथा 1937 में An Indian Pilgrim के नाम से लिखी. इस तरह की यात्रायें और गोपनीयता, सर्वस्व का त्याग और अबूझ की तलाश सुभाष के जीवन यात्रा की अनिवार्यता बन गयी. देश की स्वतन्त्रता के लिए सुभाष कुछ भी कर सकते थे. यह कुछ भी कर सकना कामयाब हुआ क्योंकि अंग्रेजी सरकार की फ़ौज में बलवे की भावना स्थायी तौर पर घर कर गयी. आज़ाद हिंद फ़ौज के बाद रायल इन्डियन नेवल म्युटिनी ने अंग्रेजी सरकार को कंपा दिया. अब फ़ौज का आखिरी सहारा भी भरोसे का नहीं रहा था. माउन्टबेटन को जल्दबाजी में वायसराय बना कर लाया गया ताकि भारत को आज़ादी दे कर अँगरेज़ यहाँ से प्रतिष्ठापूर्वक निकल सकें. साम्राज्य को सांघातिक चोट पहुचाने का कार्य सुभाष चन्द्र बोस ने किया था और इस वीर सेनानी के श्रद्धालु कवि हैं डॉ. प्रहलाद राय अग्रवाल जिन्होंने समर्पण के विचार से कवितायेँ रची, प्रकाशित किया और सुधी पाठकों तक पहुंचाया. इस सफल कार्य के लिए उन्हें ढेरों बधाईयाँ.





10 comments:

  1. अग्रवाल जी से मेरी पहली मुलाकात में मैंने उनसे आपका जिक्र किया था, वे उद्यत हुए थे, उनसे और उनकी रचना से आपका प्रत्‍यक्ष होने की जानकारी नहीं थी, लेकिन यह पोस्‍ट पढ़कर लगा कि डॉक्‍टर साहब की रचना का उचित सम्‍मान और मूल्‍यांकन हुआ है.

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  2. समीक्षा पढकर लगा कि किताब आपने तरीके से और बारीकी से पढ़ी है . अच्छा लगा .

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  3. फेसबुक पर वंदना शर्मा की टिप्पणी -

    डॉ प्रहलाद राय अग्रवाल और नेता जी ..दो भारतीय सपूत ...अग्रवाल जी के क्रतित्व और बोस के व्यक्तित्व को सामने लाने के आपके गंभीर प्रयास को नमन ..

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  4. डॉ प्रहलाद राय अग्रवाल जी की इस काव्‍यकृति के संबंध में इस पोस्‍ट को पढ़ते हुए सुभाष जी के संबंध में बहुत सी जानकारी हमें मिली, कृति के संबंध में आपकी स्‍पष्‍ट दृष्टि अच्‍छी लगी.

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  5. नेताजी और विवेकानंदजी के बीच साम्य बड़ा ही रोचक लगा. बहुत उम्दा पोस्ट.

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  6. .

    डॉ बृज किशोर ,

    सबसे पहले तो इतिहास की उपयोगी जानकारी देती हुई इस बेहतरीन लेख के लिए मेरा आभार स्वीकार करें।

    स्वामी विवेकानद और नेताजी जी जैसे व्यक्तित्व तो भारत का आधार स्तम्भ हैं। धन्य हैं डॉ प्रहलाद राय अग्रवाल जैसे लोग जिन्होंने इन महान हस्तियों के विषय में विस्तार से पुस्तक लिखी।

    पुस्तक की इस बेहतरीन समीक्षा के लिए एक बार पुनः आपका आभार।

    सादर,
    दिव्या

    .

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  7. Netaji ke baare me jitana bhi kaha jaaye aur jitana bhi suna jaaye kam hi lagta hai...bahut badhiyan post hai...

    Madan Mishra

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  8. धन्य शब्द का इस्तेमाल तो नहीं करूंगा लेकिन प्रहलाद जी ने कुछ लिखा और आपने उनके बहाने कुछ ऐतिहासिक बातें बताई, इसके लिए दोनों को धन्यवाद। हाँ, रामकृष्ण मिशन ने एक किताब छापी है 'नेताजी सुभाष के प्रेरणा पुरुष विवेकानन्द' नाम से। उसको पढ़ा भी है। नेताजी के बहाने विवेकानन्द को प्रचारित किया गया है। वैसे भी विवेकानन्द एक अधिप्रचारित व्यक्ति अधिक हैं।

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  9. इस लेख में लक्ष्मी सहगल की तस्वीर? श्याम बेनेगल की फिल्म में चित्र से मिलती जुलती कलाकार ही थी। और टिकट में नेताजी बच्चे जैसा लग रहे हैं!

    नोट वह भी 100000 का! इसमें मुझे नेताजी की एक गलत तस्वीर सामने आती है।

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