घर जाते हुए लगा कि बिहार बदल रहा है. पटना आने के पहले सुना था कि गांधी सेतु पर मरम्मत चल रहा है और इस कारण से मुजफ्फरपुर जाने वाली सड़क पर जाम लगा करता है. कभी कभी तो पन्द्रह से बीस किलोमीटर लंबी कतार वाली कुख्यात जाम
पटना के बस स्टैंड से निकलते ही जाम से सामना हुआ. पटना बाई पास से निकलने में ही एक घंटा लग गया, पहले की तुलना में एक नया परिवर्तन पाया. गाड़ी वाले जगह मिलने पर भी लाईन तोड़ कर ओवरटेक करने को तैयार नहीं थे. देर होने के बाद भी आपा धापी नहीं मची थी. कंडक्टर ने बताया कि नीतीश जी ने धक्का मुक्की रोकने के लिए प्रशासनिक व्यवस्था कर दी है. दो हजार रुपयों का जुरमाना तुरत जमा करना पड़ता है. बोलेरों वालों को भी ऐसा करने पर जुरमाना भरना पड़ता है. हमारी गाड़ी अपनी कतार में ही बढ़ती रुकती रही. मालूम हुआ कि मोकामा वाले पुल पर रिपेयर हो रहा है सो गाँधी सेतु पर दबाव बढ़ गया है . गाँधी सेतु पर भी रिपेयर चल रहा है,कहीं पर पहली लेन में तो कहीं पर दूसरी लेन में. चार गाड़ियों के बदले दो ही गाडियां आ जा सकती हैं. यह था जाम लगने का राज.. मुजफ्फरपुर शहर की सीमा से बाहर निकलने पर मालूम हुआ कि पटना दरभंगा फ्लाई ओवर चालू हो गया है. पटना से सीतामढी तक रास्ते भर सड़क निर्माण का कार्य होता दिखा.. कंडक्टर ने बताया कि सारी सड़कें फोर लेन बनायी जा रही है. सीतामढी शहर में मेहसौल चौक के पास लखनदेई नदी पर बने पुल की मम्मत का काम चल रहा था सो वहाँ पर भी जेठ महीने की भरी दोपहरी में दुःख दायी जाम का सामना करना पड़ा. भूख भी जोरों से लगी थी. डायबिटीज का मरीज़ हो चुका हूँ. शुगर लो होने से गिरने का भी खतरा था. स्टैंड में और आस पास बारिश का पानी जमा था. मौका निकाल कर यात्री कहीं भी अपनी लघुशंका से निपट रहे थे. कहीं-कहीं दीर्घ वाले भी थे. हवा में दुर्गन्ध ठोस आकार में थी. खाने वाले होटल जलकुम्भी कि तरह थे - चारो तरफ गन्दा पानी पसरा हुआ था. मन में निश्चित था कि यहाँ भोजन करने के उपरांत डायरिया होना ही है. तय किया कि डीपेनडाल की गोली खा लूँगा लेकिन भोजन किया जाये. पन्द्रह रुपये में भर पेट भोजन किया. मेरे डर के बावजूद पूरे प्रवास के दौरान लूज़ मोशन, और गैस कि शिकायत नहीं हुई. लगता है कुपोषण और गंदगी के कारण बैक्टीरिया वायरस वगैरह विलोपित हो चुके थे।
अनुज वकील साहब के डेरे पहुंचा. वहीं अखबार में पढ़ा कि सीतामढी के अन्दहरा गांव के एक छात्र कुंदन तथा खगौल की छात्रा शालिनी यादव ने संयुक्त रूप से बिहार बोर्ड में टाप किया है. नीतीश जी ने उसके घर जाकर बधाई दी है. दोनों को लैप टाप भी भेंट किया गया है. स्टेट बैंक ने पन्द्रह हजार की पुरस्कार राशि दी है. कुंदन ने लालटेन की रौशनी में पढाई की थी. वकील साहब के यहाँ घरेलू काम के लिए एक लड़की रहती थी. मालूम हुआ कि अपने घर लौट गयी है. उसे सरकार की तरफ से वजीफा मिल रहा है, रोज स्कूल जा रही है पढ़ने के लिए. कपडा भी दिया जा रहा है. खाना भी मिलता है. ऐसी अनेक राजू, गुड्डी और मुन्नी अपने मालिकों के घर से काम छोड़ कर लौट गयीं हैं. मालिकों के घरों में बच्चों को घरेलु काम खुद करने पड रहे हैं. धीमी गति से सामाजिक परिवर्तन जारी हैं. पंचायती चुनाव के आरक्षण ने इसी तरह से जनतंत्र के सामाजिक आधार का विस्तार किया है. इस सामाजिक विस्तार में सब कुछ सरल और सीधा नहीं है. खरसान के पूर्व मुखिया कुनकुन मांझी को डकैती का अभियुक्त बनाया गया है पकरी के साहू द्वारा दो दिन पहले. यह भी सुना कि कुनकुन ने साहू को दो लाख रुपये दिए थे चिमनी चलाने के लिए. रुपये तो वापस किये नहीं उलटे कुनकुन पर डकैती का अभियुक्त बना दिया।
गांव में कुछ और भी परिवर्तन हुए हैं, पहले धान की खेती अधिक होती थी लेकिन आजकल गेहूं पर अधिक जोर है. मेरा गांव भारत की बड़ी समस्याओ से रूबरू हो चुका है. ललन ट्रक चलाने के पेशे में डाला गया था. कोलकाता के पास कहीं मरा तो बाक्स में डाल गांव तक लाया गया. लाश से बहुत बदबू आ रही थी. अर्थी पर ले जाना मुश्किल था. बाक्स में ही शमशान तक ले जाया गया. चिता बनाने के बाद अपनी नाक बाँध कर लोगों ने उसे बाक्स से चिता पर उलट कर अग्नि दी. दबे सुर में कहा गया कि हमारे गाँव में एड्स का पहला शिकार वही बना. दूसरा शिकार बनने वाला लड़का धर्मेन्द्र था. सीधा सादा लड़का था, इतना सीधा कि अपने भाई को अपनी एक आँख देने के लिए तैयार था. उसका भाई अपराधी वर्ग का था और एक कांड के दौरान बगल के गांव वालों ने उसकी आँखें फोड दी थीं. उसे कहीं जाना नहीं पड़ा कहा जाता है कि उसकी पत्नी को एड्स था. उसे तो घर बैठे ही मिल गया. कुछ दिनों बाद उसने निराशा और शर्मिंदगी से विष पान कर लिया।
पटना में फेसबुकिया मित्र डॉ. राजू एवं मुसाफिर बैठा जी से मुलाकात तय थी. वर्चुअल रियलिटी से मुकाबला होना था. पर स्टेशन के बुद्ध प्लाज़ा में यह घटना मुकाबला की बजाये मन मिलन समारोह साबित हुआ. ढेर सारी बातें हुई. लगभग दो घंटे बाद उन दोनों को विदा किया. गाडी लगभग समय पर थी पर वापस होते हुए ट्रेन में पाया कि डेली पैसेंजर शेर हो चुके हैं. पहले तो ये लोग स्लीपर में ही घुसते थे. घुस्पैठियों में किशोर, युवक और वृद्ध तीनो थे. एक ने तो रामनामी चादर भी ओढ़ रखी थी. सोचा कि एक फोटो हो जाए पर लफड़े के डर से इरादा मुल्तवी किया.. रामनाम ने उन्हें इस काम से नहीं रोका था. रोकने का काम तो स्टेन गन धारी सिपाहियों और टी टी लोगों ने भी नहीं किया. मैंने बात की तो उन लोगों ने कहा कि बाढ = मोकामा तक तो ये जाते ही हैं, रोज रोज का तो काम है कौन उनके मुंह लगे ! इसी तरह की स्थिति रायगढ़ से दुर्ग और अलीगढ से दिल्ली के बीच बनी रहती है. मन को बताया कि केवल पटना के पास में रेल की धक्का मुक्की नहीं है. बिलासपुर पहुँचते-पहुँचते ऐसा लगा कि नीतिश जी के बिहार में सकारात्मक बदलाव हो रहे हैं. खामियां कहाँ नहीं होतीं. समयांतर जुलाई २०११ में विष्णु शर्मा जी ने पृष्ठ १७ पर लिखा है कि सी. बी. एस. ई. की परीक्षा में पास करने वालों का प्रतिशत ८१ प्रतिशत से ऊपर रहा. तमिलनाडू बोर्ड में ८५ से अधिक रहा. पिछले साल बिहार बोर्ड में पास होने वाले छात्रों का प्रतिशत ७०.१९ था. इस वर्ष यह घट कर ६७.२१ हो गया।
डॉ राजू के अनुरोध पर अगली पोस्ट में सीतामढ़ी के दलित - मुसहर संत.
सहज और प्रवाहमयी.
ReplyDeleteपरिवर्तन मुखिया के नाम से ही दर्ज होता है, जाम हो, विकास हो, सुराज हो या एड्स.
दबंग और बुजुर्ग - चित्र, जोरदार हैं.
ReplyDeleteअच्छा लगा पढ़कर कि बिहार अपने गौरव को फिर से पा रहा है.
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ReplyDeleteGuru ji,
ReplyDeleteBadhiya liha hai? Asal me aapko Jaam se pala para yeh such me ek dukh bhari baat hai aur indino yah Bihar ki niyati bani hue hai. Aap jara dekhe ki Bihar Buxar se Sahebgunj tak Ganga se bati hui hai aur use par karne hetu matra 3 pul hai, unme bhi do ki halat jarjar hai. Rail ka to aur bura haal hai, matra ek pul. Jis samay kaam hona tha us samay to humne samajik nayay me samay gawa diya, aab achanak pressure kafi ho gaya tab jakar kuch kaam ho raha hai. Shayad kuch dino me nijat mil jaye. Rahi baat Rail ki to phir se main bolunga ki Buxar se Kahalgaon tak matre do line, Ganga cross karne ke liye matra ek pul, kripya ise dusre rajya ke infrastructure se mila kar dekhe, Delhi ki baat chod de, par bagal me Bengal ko hi dekhe Asansol se Kolkata hetu 4 line, kuch loop line. Bihar wale ni kafi dino tak Rail mantralaya samhala par sabhi ne gariyon ki sankhya matra badhane par jor diya. Last wale mahasay to apne sasuraal tak rail le jane me hi pareshaan rahe. Ha kuch lambi lambi ghosna jarur hui par jamin par wahi hua jo aapne dekh aur mahsus kiya. Rahi baat tatkalin rail mantralay ki to unlogo ne to Howrah Patna route ko lagta hai mara hua route maan liya hai. Unki suvidha Gaya raoute hai is liye usi par gariyaan jayada chalaiye ja rahi hai. Majedaar baat hai ki population Patna Howrah route par hai aur Gari Gaya route se jyada jati hai. Aajtak maine is par kisi netaji ka ek bhi bayan nahi suna hai. Bahut dino se sunte aa raha hu ki Buxar se Mokamah tak ek aur line banne wali hai parr shayad woh ek sapna hi hai humare liye.
Khair samasyaan bahut hai, itna jarur hai ki jahan Pipal nahi hota waha log Rer se hi kaam chalate hai. Nitish ji such me kuch prayas kar rahe hai jo sakaratmak hai.
Anil
अच्छा लगा जान...कि कुछ तो सकारात्मक हो रहा है,बिहार में....विकास की गति धीमी ही सही...पर गति है तो.
ReplyDeleteरोचक शैली में लिखा गया संतुलित आलेख है. मौजूदा हालात के गुण-दोष दोनों का उल्लेख है इसमें. हाँ, जो लोग इस सूबे को पूरी तरह से जन्नत या पूरी तरह से जहन्नुम के तौर पर देखना चाहते हों, उनको आपत्ति हो सकती है.
ReplyDeleteफेस बुक पर प्राप्त पंकज जी की टिप्पणी
ReplyDeletePankaj Valvai
sir ji aap ne badhia observation kiya hai.ham log jo bihar ke bare me sochte the vo aab galat lag raha hai.jiska shrey CM ko jata hai.bihar ka naksha hi badal diya. Aapke lekh ne dunia ko sahi baat batai.ABHINANDAN.
फेस बुक पर प्राप्त डा राजू की टिप्पणी
ReplyDeleteDrRaju Ranjan Prasad 'आप वाकई 'पोजिटिव' हो चले हैं. खैर.'
फेसबुक पर प्राप्त टिप्पणी
ReplyDeleteडॉक्टर ओम राजपूत "आपका आलेख उम्मीद बयां करता है मगर यह शुरूआत ही है। "
फेसबुक पर प्राप्त टिप्पणी
ReplyDeleteAanand Singh " I have seen it..."
फेस बुक पर प्राप्त टिप्पणी
ReplyDeleteAnish Shrivas "thanks sir ji "
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ReplyDeleteSunil Kumar Sharma "भूख भी जोरों से लगी थी. डायबिटीज का मरीज़ हो चुका हूँ. शुगर लो होने से गिरने का भी खतरा था."
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ReplyDeleteSanjay Mishra Habib बढ़िया वृत्तांत... सादर.
फेसबुक से प्राप्त टिप्पणी
ReplyDeleteHitendra Patel "आपसे बात करना हमेशा आनन्ददायक होता है."
नितीश के बिहार पर रोचक तरीके से आपने प्रकाश डाला है। अधोसंरचना विकास में सड़कों की अहम भूमिका है, इसके साथ ही यदि प्रदेश में प्रशासनिक व्यवस्था को जनता जुर्माने के डर के अतिरिक्त दिल से स्वीकार कर रहे हैं तो यह बहुत अच्छी बात है।
ReplyDeleteप्रवास के दौरान डीपेनडाल रखने की बात काम की है, भविष्य के लिए इसे डायरी में नोट किया जा रहा है।
कुंदन व शालिनी जैसे बच्चों को प्रोत्साहन देना नितीश के भावी सोंच को स्पष्ट करता है, बिहार अब अपनी छवि सुधार चुका है।
धान के स्थान पर गेहूं और दूसरे फसल चक्र परिवर्तन प्रशासनिक सोंच से परे किसान की खुद की सोंच है जो वहा फलित हो रही है, यह जानकर अच्छा लगा। यहां पूर्व शासन में प्रशासकीय सोंच के बाद भी फसल चक्र परिर्वतन टांय टांय फिस्स हो गया था।
डॉ.राजू जी एवं मुसाफिर बैठा जी से र्वचुअल-रियलिटी मुलाकात के संबंध में और जानने की उत्सुकता है।
अगली पोस्ट का इंतजार है ..
फेस बुक से प्राप्त टिप्पणी
ReplyDeleteKashish Devi
" I read this...it's so realistic...."
फेस बुक पर प्राप्त टिप्पणी
ReplyDeleteAshutosh Mishra
" bahut dino baad aapne likha hai...achcha likha hai sir aap aur vistaar se batayen bihar ke bare me..pata to chale kitna parivartan hua hai"
फेस बुक पर सतीश भैया की टिप्पणी
ReplyDeleteSatish Jayswalposted toBraj Kishor P. Singh
"mujhe aisa laga ki tumhare sath maine bhee bihar kee yaatra kar lee. chitra sundar ahi.saral dahang se badi baat kaise likhee jaati hai ? yah tumhare likhane men milta hai."
फेस बुक पर नरेन्द्र नेगी जी की टिप्पणी .
ReplyDeleteNagendra Negi
" maine bhi dekha hai..nitish ji achha kam kar rahen hai bihar ke liye..."
डाक्टर साहब - बिहार में तो कई जिलो में घुमा हूँ ! वाकई नितीश जी के समय में बिहार की गरिमा बढ़ी है ! स्वतंत्रता दिवस की बधाई !
ReplyDeleteसब लेखों को पढ़ने के बाद इस पर आया। वैसे आधा पढ़कर दूसरे लेख पढ़ रहा था। मुसाफ़िर जी ने सत्य कहा है। कालचिन्तन जी ने कोई चिन्तन नहीं किया है। एक कशिश देवी हैं, उनका बयान- 365 दिन के साल से सिर्फ़ एक दिन यानि शून्य दशमलव दो के करीब के वर्णन को, इतना वास्तविक मान लेना ठीक नहीं है।
ReplyDeleteमुसाफ़िर जी के दावे से सहमत हूँ।
डा राजू की बात ही सही है कि आपने ही सकारात्मक सोच से लिख दिया है।
लिखना तो पसन्द आया ही और चित्र, खासकर दबंग का तो लाजवाब खिंचा है आपने। (हास्य- अगर असली हो)
वह प्रतिभा वाली बात भी मजाक जैसी है। आई आई टी टापर शितिकंठ को सरकार ने छात्रवृति को लेकर परेशान किया था, यह याद रखा जाय। आज भी सरकार के रद्दी नीतियों को सुनकर आप खुद जान जाएंगे कि क्या हो रहा है यहाँ? बिहार में शिक्षा के क्षेत्र में जितने घटिया और रद्दी प्रयोग हो सकते हैं, धड़ाधड़ किए जा रहे हैं। अभी हाल में जिस चालाकी से जमीन आवंटन का मामला रफ़ा-दफ़ा किया गया, यह भी नीतीश जी की पोल अच्छे से खोलता है।
यहाँ लिंक देना अच्छा तो नहीं लग रहा लेकिन मैंने बिहार पर कई लेख लिखे थे, उन सबके लिंक दे देता हूँ-
नीतीशम् नमामि का दौर- http://hindibhojpuri.blogspot.com/2011/05/blog-post.html
डॉक्टरों और शिक्षकों की संवैधानिक लूट- http://hindibhojpuri.blogspot.com/2011/02/blog-post.html
http://hindibhojpuri.blogspot.com/2011/02/blog-post_27.html
सुशासन के बिहार में अपराध का सच-http://hindibhojpuri.blogspot.com/2011/06/blog-post.html
बात सड़क की है तो इस पर भी कुछ खास नहीं। थोड़ी तेज चाल का आदमी ठहरा, इसलिए किसी विकास या विनाश को भी तेज देखना ही सही लगता है। पटना में रास्तों का कैसा हाल है, यह तो पचासों गलियों के लोग बता देंगे। कई मुख्य सड़कों के लोग भी बता देंगे।
आपने बस यात्रा और खाने का जिक्र तो लाजवाब किया है।
बहुत कह दिया अब।
बहुत रोचक अंदाज़ में आपने कच्छप-चाल से विकास को दर्शाया है। गन्दगी से भयभीत होकर कीटाणु भी अपना निवास छोड़ गए हैं--ये बढ़िया रहा।
ReplyDeleteफेस बुक पर प्राप्त टिप्पणी
ReplyDeleteअनल कान्त झा "धन्यवाद सर !!"
फेस बुक पर प्राप्त टिप्पणी अनल कान्त झा
ReplyDelete' ye jaam sushashan ke Naam !'
फेस बुक पर प्राप्त टिप्पणी
ReplyDeleteAshok Moti " YATRA BRITANT SUNDAR HAI ,YATRA TEDHE -MEDHE RASTE SE GUJRAKAR KAHI LOMHARSHAK JANKARIYAN DETI HAI .aPKI YESI YATRA JARI RAHE ,SHUBHKAMNAYEN ."
फेस बुक पर प्राप्त टिप्पणी
ReplyDeleteSantosh Singh
"Aap ek mahan sameekshak hai and a great writer also, aapke bare me kuch likhana suraj ko diya dikhana hai "
फेस बुक पर प्राप्त मित्र प्रकाश कुमार जी की प्रतिक्रिया
ReplyDeletePrakash Kumar
"बहुत सुन्दर लगा. सुन्दर वाक्य और शब्दों का उपयोग किया है, हम प्रथम से अन्त तक पढ़े और इतनी सुन्दर रचना प्रस्तुति के लिए आप प्रशंषा के पात्र जरुर है. हमारी ओर से आपके लिए ढेर साडी शुभकामना "
फेस बुक पर प्राप्त गायकवाड साहब की टिप्पणी
ReplyDeleteRajendra Ranjan Gaikwad " AAPKI LEKHNI NE TO RAAGDARWARI KI YAD DILA DI..BHAI SAB PURE DESH KA YAHI HAAL HAI KEWAL LOG,JAGAH AUR SAMAY KA THODA SA FER HO JATA HAI..SAJEEV CHITRAN PATHAK KO BANDHNE MEE SAFAL HAI..BADHAAI.."
फेस बुक पर सिद्दीकी साहब की टिप्पणी
ReplyDeleteKd Siddiqui
"ati sundr. nitish ji sarahniy kary kar rahe hain. kendr sarkar ko nitish ji se sikhna chahiye."
फेस बुक पर प्राप्त शोभित सर की टिप्पणी
ReplyDeleteShobhit Bajpayee" kamal kar diya aapane ,itana aachha likh gaye aaj ke bihar ke bare me,sach kahu to ek taswir ubhar di aapane ,aapake aise hi lekhan ki nirantar pratiksha rahati hai"
फेस बुक पर प्राप्त टिप्पणी
ReplyDeleteChandra Prakash Ojha
sir, aapke bloge ko dekh kar to ye laga kaha se suru karu , sabhi ko ek sath padhne ka dil hua . itni achi lekhni , itna acha sanyojan , naman karta hu aapki lekhni ko
बिहार के वर्तमान की आपकी आँखों-देखी ने प्रभावित किया. धीमी गति से ही सही सामाजिक विकास तो हो रहा है.
ReplyDeleteमुसाफिर बैठा जी की टिप्पणी का हटाया जाना, बेहद बुरा लगा।
ReplyDeleteBihar sachmuch badal raha hai lekin puri tarah badalne abhi samay lagega. waise nitish ne yah aash jarur jagai hai ki agar rajsatta ke pas sankalp ho to vihar mein bhi vikas ki bayar bah sakti haia.
ReplyDeleteबिहार में विकास तो हो रहा है ..पर रफ़्तार तेज करनी होगी. हमें, आपको, सबको सहयोग करना होगा..सबसे ज्यादा शिक्षा पर और लोगों की मानसिकता बदलनी होगी.
ReplyDeleteआपने अपने घर की, गृह-राज्य की याद दिला दी , मन थोडा भावुक हो आया. सकारात्मक परिवर्तन की उम्मीद दर्शाने के लिए धन्यवाद.
डॉ. साहब,
ReplyDeleteदीपावली के शुभ अवसर पर आप सभी को परिजनों और मित्रों सहित बहुत-बहुत बधाई। ईश्वर से प्रार्थना है कि वह आपका जीवन आनंदमय करे!
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साल की सबसे अंधेरी रात में*
दीप इक जलता हुआ बस हाथ में
लेकर चलें करने धरा ज्योतिर्मयी
बन्द कर खाते बुरी बातों के हम
भूल कर के घाव उन घातों के हम
समझें सभी तकरार को बीती हुई
कड़वाहटों को छोड़ कर पीछे कहीं
अपना-पराया भूल कर झगडे सभी
प्रेम की गढ लें इमारत इक नई
अच्छा लगा पढ़कर.
ReplyDeleteबहुत अच्छा लगा आपसे मिलकर।
ReplyDeleteहम भी जब छठ में गए थे, पटना गांधी सेतु पार करते समय वही महसूस किया जो सब आपने लिखा है।
बाकी बदलाव तो चतुर्दिक दिख रहा है।
प्रस्तुति अच्छी लगी । मेरे नए पोस्ट पर आप आमंत्रित हैं । नव वर्ष की अशेष शुभकामनाएं । धन्यवाद ।
ReplyDeleteएक रिपोट जो , आँखें खोलने में सक्षम आपका आभार आपकी भाषा शैली से प्रभावित हूँ आभार
ReplyDeleteअब तो काफी इंतज़ार करा दिया आपने सीतामढ़ी के दलित - मुसहर संत के दर्शन का। कब होगी नज़रे-इनायत?
ReplyDelete"लाईन तोड़ कर ओवरटेक करने को तैयार नहीं थे" यह तो महा आश्चर्य हुआ. ऐसी परिस्थतियों में स्थति को और अधिक गंभीर ओवेर्टेक करने वाले ही करते हैं. पोस्ट पढ़कर अच्छा लगा. सीतामढ़ी बाल काल में एक मित्र से मिलने जाना हुआ था.
ReplyDeleteशुक्रिया सर ,काफी बदल गया सीतामधी अब तो ,साल में दो बार जाना होता है ,पिताजी और भाई से मिलने जाता हूँ ,पातमा पीएच डी मौखिकी में भी गया था .
Deleteब्लॉग पर आने के लिए आभार.
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